Editorial: कृषि क्रांति के जनक डॉ. स्वामीनाथन का देश रहेगा कृतज्ञ
- By Habib --
- Friday, 29 Sep, 2023
Dr. Swaminathan, father of agricultural revolution
Dr. Swaminathan, father of agricultural revolution भारत में एक वह दौर भी था, जब अमेरिका से आए लाल गेहूं की रोटी खाकर लोग पानी पीकर सो जाते थे। निश्चित रूप से आजादी के बाद का वह समय ऐसी अंधेरी गुफा था, जिसमें से बाहर आना महान आशावादी कार्य था। एक देश के आत्मनिर्भर होने के लिए उसके पास खाद्यान्न की प्रचुरता का होना आवश्यक है। भारत आज खाद्यान्न के रूप में सरप्लस देश है और वह इसका निर्यात करता है। ऐसा उन व्यक्तित्वों की वजह से संभव हुआ, जिन्होंने कृषि क्षेत्र की सूरत बदलने का संकल्प लिया। ऐसे में महान कृषि वैज्ञानिक डॉ. एस स्वामीनाथन की भूमिका और उनके योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। डॉ. स्वामीनाथन के निधन से देश ने ऐसी महान शख्सियत को खो दिया है, जिन्होंने अपने जीवन काल में देश को अकाल से अन्नपूर्ण बना दिया। भारत के विकासशील चरित्र में ऐसे व्यक्तित्व नगीने की भांति हैं।
देश में हरित क्रांति की शुरुआत स्वामीनाथन ने दिल्ली के ही एक गांव से की थी। इस गांव की मिट्टी, खेत और प्रयोगशाला का भारत की कृषि क्रांति में बड़ा महत्व है। इस गांव का नाम है जौंती। वास्तव में जौंती को हरित क्रांति का गांव कह सकते हैं। इस गांव को स्वामीनाथन ने गेहंू और बाजरा के उन्नतशील बीजों पर रिसर्च करने के लिए चुना था। स्वामीनाथन और उनके साथियों ने भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूसा में गहन शोध के बाद विकसित किया था। माना जाता है कि जौंती गांव दिल्ली मेट्रो के मुंडका स्टेशन से करीब 7-8 किमी दूर है। इस गांव के बिना हरित क्रांति अधूरी रह जाती। ये बात है 1960 के दशक की।
डॉ. स्वामीनाथन और प्रोफेसर नारमन बोरलॉग की टीम ने भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूसा में गेहूं के उन्नतशील बीज विकसित किए। बीज तो विकसित हो गए, लेकिन इन्हें कहां बोया जाए, ये अभी तय नहीं हुआ था। काफी खोजबीन के बाद पूसा कैंपस और दिल्ली के पास किसी गांव में इन्हें लगाने का फैसला हुआ। लेकिन किस गांव में बीज लगाया जाए ये जिम्मेदारी पूसा के ही एक कृषि वैज्ञानिक अमीर सिंह को दी गई। उन्होंने खोजबीन की और जौंती गांव को इसके लिए चुना। अमीर सिंह हरियाणा के झज्जर के रहने वाले थे, उन्हें इस इलाके की जमीन के बारे में समझ थी।
अमीर सिंह ने देखा कि जौंती गांव उन्नत बीज को लगाने के लिए उपयुक्त जगह है। यहां एक नहर से पानी पहुंचता था। दिल्ली से यहां की दूरी भी कम थी। बस फिर क्या था, गांव के खेत में गेहूं के विकसित किए गए बीज लगाए गए और जौंती हरित क्रांति का पहला गांव बन गया। डॉ. स्वामीनाथन के कहने पर गांव के किसानों ने अपने खेतों में पहली बार लैब में तैयार हुए उन्नतशील बीजों को बोया। डॉ स्वामीनाथन की रिसर्च और किसानों की मेहनत रंग लाई। जौंती गांव में एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं की फसल की पैदावार हुई। जहां पहले 20 क्विंटल पैदावार होती थी, वो अब दोगुनी हो चुकी थी।
साल 2004 में केंद्र सरकार ने देश के किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने और पैदावार बढ़ाने के लिए डॉ. स्वामीनाथन से संपर्क साधा। उनकी अध्यक्षता में स्वामीनाथन आयोग गठित किया गया। इस आयोग ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें कई तरह की सिफारिशें की गई थीं। लेकिन अब तक कोई सरकार इन सिफारिशों को पूरी तरह लागू नहीं कर पाई है। यही वजह है कि जब-तब इस आयोग की रिपोर्ट को पूरी तरह लागू करने की मांग उठती रहती है। कहा जाता है कि अगर इस रिपोर्ट को लागू किया जाए तो किसानों की तकदीर बदल जाएगी।
आयोग की सिफारिशों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश की थी ताकि छोटे किसानों को फसल का उचित मुआवजा मिल सके। आयोग का कहना था कि किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछ ही फसलों तक सीमित न रहें। गुणवत्ता वाले बीज किसानों को कम दामों पर मिलें। साथ ही आयोग ने जमीन का सही बंटवारा करने की भी सिफारिश की थी। इसके तहत सरप्लस जमीन को भूमिहीन किसान परिवारों में बांटा जाना चाहिए।
आयोग ने राज्य स्तर पर किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने और वित्त-बीमा की स्थिति मजबूत करने की भी बात कही। वास्तव में आज भी सूखा और बाढ़ में फसल पूरी तरह बर्बाद होने के बाद किसानों के पास कोई खास आर्थिक मदद नहीं पहुंचती है। बीज आदि में पैसे लगा चुका किसान कर्ज में दब जाता है और आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाता है। ऐसे में डॉ. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल जरूरी हो जाता है। हालांकि यह भी जरूरी है कि कृषि क्षेत्र के विकास के लिए वे सभी उपाय किए जाएं जोकि जरूरी हैं। डॉ. स्वामीनाथन के योगदान और उनके प्रयासों को देश कभी नहीं भुला पाएगा। उनकी आत्मा देश के हरित खेतों को देखकर अमर रहेगी।
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